& #39;India& #39;s Greta Thunberg& #39;
हम मीडिया में अक्सर इस हेडिंग के साथ देश के यंग क्लाईमेट एक्टिविस्ट की खबरें पढ़ते रहते हैं।
एक तो यह तुलना ही अपने आप में बहुत बेहूदगी भरा है।
लेकिन इनमें भी आपने कभी कुनी सिकाका का नाम नहीं सुना होगा?
तो आईये इस Thread में कुनी सिकाका को जानते हैं.
हम मीडिया में अक्सर इस हेडिंग के साथ देश के यंग क्लाईमेट एक्टिविस्ट की खबरें पढ़ते रहते हैं।
एक तो यह तुलना ही अपने आप में बहुत बेहूदगी भरा है।
लेकिन इनमें भी आपने कभी कुनी सिकाका का नाम नहीं सुना होगा?
तो आईये इस Thread में कुनी सिकाका को जानते हैं.
कुनी सिकाका ग्रेटा और दूसरे & #39;young climate activist& #39; से बहुत पहले से जंगल और पर्यावरण बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं।
और सिर्फ लड़ ही नहीं रही बल्कि इसकी बड़ी कीमत भी चुका रही है।
उम्र 20 साल है। उनका गांव नियामगिरी के पहाड़ों पर बसा है।
कुनी डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय से आती है।
और सिर्फ लड़ ही नहीं रही बल्कि इसकी बड़ी कीमत भी चुका रही है।
उम्र 20 साल है। उनका गांव नियामगिरी के पहाड़ों पर बसा है।
कुनी डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय से आती है।
पिछले कई सालों से उसके गांव, जंगल और पहाड़ पर एक कंपनी की नजर गड़ी हुई है, जो वहां जंगलों-गांवों को खत्म करके बॉक्साइट निकालना चाह रही है। लेकिन स्थानीय आदिवासी नियामगिरी पहाड़ को अपना भगवान मानते हैं, उनकी जीविका इसी जंगल पर टिकी है।
उन्होंने दशक भर से ज्यादा अपने जंगल, पहाड़ और प्रकृति को बचाने के लिये लड़ाई लड़ी- एकदम शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का रास्ता चुना। इसी संघर्ष का नतीजा है कि कंपनी बॉक्साईट खनन करने में अब तक नाकाम रही है।
इसी संघर्ष में कुनी सिकाका भी शामिल है। सिकाका के परिवार वाले नियामगिरी सुरक्षा समिति से जुड़े हैं, जो जंगल पर आदिवासियों की हक की लड़ाई को शांतिपूर्ण तरीके से लड़ने और जीतने में सफल रही है।
खुद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नियामगिरी में खनन होना चाहिए या नहीं यह फैसला वहां की स्थानीय ग्रामसभाएं तय करेंगी।
कोर्ट के फैसले के बाद ग्रामसभा हुई, जिसमें सभी गांवों ने एकमत से कंपनी को नकार दिया।
कोर्ट के फैसले के बाद ग्रामसभा हुई, जिसमें सभी गांवों ने एकमत से कंपनी को नकार दिया।
पिछले सालों में कई बार ऐसा हुआ जब कुनी सिकाका को पुलिस ने & #39;माओवादी& #39; बताकर गिरफ्तार कर लिया।
सिकाका को सिर्फ इसलिए परेशान किया जाता रहा है ताकि वो अपनी जंगल बचाने की लड़ाई लड़ना बंद कर दें।
लेकिन न तो उन्होंने और न ही उनके गांव के लोगों ने हार मानी है।
सिकाका को सिर्फ इसलिए परेशान किया जाता रहा है ताकि वो अपनी जंगल बचाने की लड़ाई लड़ना बंद कर दें।
लेकिन न तो उन्होंने और न ही उनके गांव के लोगों ने हार मानी है।
लेकिन पुंजीपतियों के नियंत्रण में फंसी मीडिया आपको कुनी सिकाका जैसे जमीनी कार्यकर्ताओं की लड़ाई को नहीं बतायेगी।
यह जिम्मेदारी हमारे और आप पर है कि हम अपने so called & #39;Climate justice& #39; की लड़ाई में कुनी सिकाका जैसे एक्टिविस्ट को जगह देते हैं या नहीं!
यह जिम्मेदारी हमारे और आप पर है कि हम अपने so called & #39;Climate justice& #39; की लड़ाई में कुनी सिकाका जैसे एक्टिविस्ट को जगह देते हैं या नहीं!
उन एक्टिविस्टों को जगह देते हैं या नहीं जो अंग्रेजी या मेनस्ट्रीम मीडिया की भाषा नहीं बोल पाते, जिनके पास क्लाईमेट चेंज को बताने के लिये कोई बड़ा जार्गन नहीं है, डिजिटल कैंपन नहीं है बल्कि उनका पूरा जीवन ही प्रकृति से मिलकर बना है।
क्योंकि बॉस असली लड़ाई तो वही लड़़ रहे हैं!
क्योंकि बॉस असली लड़ाई तो वही लड़़ रहे हैं!
2017 में जब कुनी को गिरफ्तार किया गया था, तब यह ब्लॉग @YKAHindi पर लिखा था। इसके बाद 2019 में भी कुनी की गिरफ्तारी हुई। https://www.youthkiawaaz.com/2017/05/tribal-leader-kuni-sikaka-arested-by-odisha-police/">https://www.youthkiawaaz.com/2017/05/t...